cover image: Sanjari : Folk Music of Rajasthan by Anwar Khan Mangniyar and his Team संजारी : राजस्थान के लोक गीत - अनवर खान मांगणियार

Sanjari : Folk Music of Rajasthan by Anwar Khan Mangniyar and his Team संजारी : राजस्थान के लोक गीत - अनवर खान मांगणियार

30 Dec 2017

Anwar Khan Manganiyar is considered an extremely melodious artist of the folk music of Rajasthan. At the Sanjari programme, the audience became completely enchanted as soon as he began singing the first ‘Aalap’. Anwar Khan Manganiyar was born in Jaisalmer. He learnt music from his father, late Shri Ramajan Khan, right from his childhood. At the age of 12, he also learned the nuances of music from Padmabhushan Komal Kothari. Since then, he has been entertaining people with his singing in the country and abroad. Manganiyars are originally professional singers from West Rajasthan. Their patron are mainly the people of the Rajput and the Vanik communities. The way of life of the Manganiyars is very similar that of the Hindus. They sing songs on auspicious occasions in the family of their patrons. Manganiyars have a song for every occasion – be it the birth of a child, or the naming ceremony, engagement, marriage or the farewell. Manganiyars have a wealth of hundreds of folk songs. Their music closely resembles Indian classical music. Their folk songs are based on classical ragas. It may be possible that the names of the ragas of these folk songs are different from the classical ragas, but the legacy of these songs are passed from one generation to another. The children of the Manganiyar families start learning music in the oral tradition from an early age. Anwar Khan Manganiyar started his programme with a prayer to Lord Gajanan. The lyrics of this composition, based on the raga Todi, were - ‘Maharaj Gajanand Aao Ji Mahari Mandali Mein Rang Barsao Ji’. After that he sang many auspicious songs associated with the cycle of life. Before each song, he recited a couplet before the audience. In that couplet, the raga of that presentation was mentioned. His special style was well received by the audience After Anwar Khan Manganiyar's rendition of the Gajanan Vandana, it was the turn of Ghodalio. This welcome song was sung by the artist in raga Sarang. Then he sang 'Halario'. This song is sung at the time of childbirth in homes. This folk song, presented in the Raga Sameri, is said to be the song of the infant form of Lord Krishna. After this, it was the turn of 'Bana'. Anwar Khan Manganiyar also presented traditional songs such as 'Sundario', 'Kotal Ghondalo', 'Holi', 'Sialo', 'Unalo', 'Barsalo' from his bouquet of folk songs. During all of this, Rafiq Khan on the Kamayacha, Roshan Khan on the Harmonium, Bhungar Khan on the Dholak and Jasu Khan on the Khadatal, gave a wonderful accompaniment. During these presentations, Sawai Khan earned the applause from the audience by playing the Morchung. Anwar Khan Manganiyar concluded his programme by singing devotional songs. राजस्थानी लोक संगीत में अनवर खान मांगणियार को बेहद सुरीला कलाकार माना जाता है। संजारी कार्यक्रम में जैसे ही उन्होंने पहला आलाप लिया दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। अनवर खान मांगणियार का जन्म जैसलमेर में हुआ। उन्होंने बचपन से ही अपने पिता स्वर्गीय श्री रमजान खान से संगीत की तालीम ली। 12 वर्ष की उम्र में अनवर खान मांगणियार ने पद्मभूषण कोमल कोठारी से भी संगीत की बारीकियों को जाना। इसके बाद से वे देश-विदेश में अपनी गायकी से लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। मांगणियार मूलतः पश्चिम राजस्थान के पेशेवर गायक होते हैं। राजपूत और वणिक समुदाय के लोग ज्यादातर इनके जजमान होते हैं। मांगणियारों का रहन-सहन काफ़ी हद तक हिंदुओं के रीति रिवाजों जैसा ही होता है। वे अपने जजमानों के परिवार में मांगलिक अवसरों पर गीत गाते हैं। बच्चे का जन्म हो, नामकरण हो या फिर सगाई, शादी या विदाई - मांगणियार हर प्रसंग के गीत गाते हैं। मांगणियारों के पास लोकगीतों में सैकड़ों गीतों का खजाना है। इनका संगीत काफ़ी हद तक भारतीय शास्त्रीय संगीत से मिलता जुलता है। इनके लोकगीत शास्त्रीय रागों पर ही आधारित होते हैं। यह संभव है कि इन लोकगीतों के रागों का नाम शास्त्रीय रागों से अलग हो लेकिन इन गीतों की विरासत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाती है। मांगणियार जाति के घरों के बच्चे बचपन से ही वाचिक परंपरा में संगीत सीखते रहते हैं। अनवर खान मांगणियार ने अपने कार्यक्रम की शुरूआत गजानन वंदना से की। राग तोड़ी पर आधारित इस रचना के बोल थे- ‘महाराज गजानंद आओ जी म्हारी मंडली में रंग बरसाओ जी’। इसके बाद उन्होंने अपनी प्रस्तुतियों के दौरान जीवन चक्र से जुड़े कई मांगलिक गीतों को प्रस्तुत किया। हर प्रस्तुति के पहले वे दर्शकों को एक दोहा सुनाते थे। उस दोहे में ही उस प्रस्तुति के राग का जिक्र रहता था। उनके इस खास अंदाज को दर्शकों ने काफ़ी सराहा। अनवर खान मांगणियार की प्रस्तुतियों में गजानन वंदना के बाद ‘घोड़लियो’ की बारी थी। इस स्वागत गीत को कलाकारों ने राग सारंग में गाया। फिर इसी क्रम में उन्होंने ‘हालरियो’ सुनाया। यह गीत घर में बच्चे के जन्म के समय गाया जाता है। राग सामेरी में प्रस्तुत इस लोकगीत को कृष्ण भगवान के शिशु स्वरूप का गीत भी माना जाता है। इसके बाद बारी थी ‘बना’ की। अनवर खान मांगणियार ने लोकगीतों के अपने गुलदस्ते से ‘सुंदरियो’, ‘कोतल घोंडलो’, ‘होली’, ‘सियालो’, ‘उणालो’, ‘बरसालो’ जैसे पारंपरिक गीत भी कार्यक्रम के दौरान प्रस्तुत किए। इस दौरान कामयाचा पर रफ़ीक खान, हारमोनियम पर रोशन खान, ढोलक पर भुंगर खान और खड़ताल पर जस्सू खान ने शानदार संगत की। सवाई खान ने इन प्रस्तुतियों के दौरान मोरचंग बजाकर दर्शकों की वाहवाही लूटी। अनवर खान मांगणियार ने अपने कार्यक्रम का समापन भजन गाकर किया।
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Published in
India
Source
Indira Gandhi National Centre for the Art, New Delhi इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली
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Video