Assam is also known as Kamrup Pradesh. The world famous Kamakhya Devi temple is located here. The natural beauty of this place is as famous as the sweet folk tunes and the sounds of drums are as rapturous. Kamrupi folk songs and Bihu songs stand out in prominence here. Besides these, all the tribes have their own folk songs, which are also indicative of their own distinct cultures. Mr. Ranjit Gogoi, an artist from the northeast of the country, along with his fellow artists, presented a melodious and fragrant bouquet of Assamese folk songs to the audience. The variety of folk songs presented by him were like the flowers of a bouquet. The program started with Assamese drum playing. This led to a flow of energy throughout the auditorium. This was followed by devotional songs written by the spiritual master of Assam, Shri Shankar Deb and his disciple Shri Madhav Deb. It is also called the Baur Song. The echoes of the Assamese Khol accompanying this presentation made the whole atmosphere devotional. In the same course, folk songs of three major tribes of Assam - Hajong, Karbi and Rabha – were also presented. Actually, the workers in the tea gardens of Assam come from Jharkhand, Chhattisgarh, Orissa, West Bengal and Bihar. These workers also bring their traditional folk songs with them. The confluence of these songs with the Assamese language is called 'Jhumur', and the workers find relief from fatigue by humming them. The artists presented 'Jhumur' in the same spirit. Bodo is the largest tribe in Assam. They have a large treasure of their own songs and music. The duet of the tune of 'Bor Doi Sikhla' and the 'Bagurumba' song was well appreciated by the audience. A story of Kamrupi folklore was also presented during the program in which the daughter, who comes home after marriage, narrates her grief to a bird. The lyrics of this song were- ‘O haalki sooti haalki kun dekhe jaabin’. After this, the love song 'Bhalo Kodiya Bajao Re Datra, Kamala Sundari Nache' from Goalpara area was presented. In the same course, the Tiwa song was presented, which is sung to express joy at the time of harvest by the Tiwa tribe. Its lyrics were- ‘Aaji jam barat o Muray hune oye’. During the event Mitali Das and Ashamani Rahag accompanied Ranjit Gogoi in Mayki. Dilip Heera's melodious flute caught everyone's attention. Mohan Duwara and Shiv Prasad Barua played the Khol. Bhaskar Das played the Dholaki and won accolades. At the end of the program, Ranjan Gogoi presented the famous Bihu song from Assam - ‘Jaldi Jooban Kalat, O Banar Bagri Peeriti, O Banar Bagri’. The audience enjoyed to the full during all these presentations. असम को कामरूप प्रदेश भी कहा जाता है। यहाँ पर विश्व प्रसिद्ध कामाख्या देवी का मंदिर है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य जितना मशहूर है उतनी ही मीठी यहाँ की लोक धुनें हैं और उतने ही जोशीले यहाँ के ढोल हैं। कामरूपी लोकगीत और बीहू गीत यहाँ की प्रमुखता है। इसके अलावा सभी जनजातियों के अपने-अपने लोकगीत हैं, जो उनकी संस्कृति के परिचायक भी हैं। देश की पूर्वोत्तर दिशा से आए कलाकार श्री रंजीत गोगोई ने अपने साथी कलाकारों के साथ मिलकर दर्शकों के लिए असमी लोकगीतों का सुरीला और सुगंधित गुलदस्ता पेश किया। इस गुलदस्ते में फूलों के तौर पर तरह तरह के लोकगीत थे। कार्यक्रम की शुरूआत असमी ढोल वादन से हुई। इससे पूरे सभागार में ऊर्जा का संचार हो गया। इसके बाद असम के आध्यात्मिक गुरु श्री शंकर देब और उनके शिष्य श्री माधव देब के लिखे भक्ति गीत प्रस्तुत किए गए। इसे बोर गीत भी कहा जाता है। इस प्रस्तुति के साथ असमी खोल की गूंज ने वातावरण को भक्तिमय कर दिया। इसी कड़ी में असम की तीन प्रमुख जनजाति- हाजोंग, कारबी और राभा के लोकगीतों को प्रस्तुत किया गया। दरअसल, असम के चाय बागानों में काम करने वाले मजदूर झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और बिहार से आते हैं। ये मजदूर अपने साथ अपने पारंपरिक लोकगीत भी लाते हैं। असमी भाषा के साथ इन्हीं गीतों के संगम को ‘झुमुर’ कहा जाता है, जिसे गुनगुनाकर मजदूर अपनी थकान दूर करते हैं। कलाकारों ने ‘झुमुर’ को इसी अंदाज में पेश किया। असम की सबसे बड़ी जनजाति है बोरो। इनके पास गीत और संगीत का अपना विस्तृत खजाना है। बोरो संगीत में ‘बोर दोई सिखला’ की धुन और ‘बागुरुम्बा’ गीतों की जुगलबंदी को दर्शकों से खूब सराहना मिली। कार्यक्रम के दौरान कामरूपी लोकगीत का वह प्रसंग भी प्रस्तुत किया गया जिसमें शादी के बाद घर आई बेटी अपना दुख एक पक्षी को सुनाती है। इस गीत के बोल थे- ओ हालकी सूती हालकी कुन देखे जाबीं। इसके बाद ग्वालपाडा इलाके का प्रेम गीत ‘भालो कोडिया बजाओ रे दतरा, कमला सुंदरी नाचे’ प्रस्तुत किया गया। इसी कड़ी में टीवा जनजाति का फसल आने की खुशी में टीवा गीत पेश किया गया। 'इसके बोल थे- आजी जाम बरत ओ मुरे हुने ओये’।| इस कार्यक्रम के दौरान रंजीत गोगोई के साथ मिताली दास और आशामनी रहांग ने गायकी में संगत की। दिलीप हीरा की मधुर बांसुरी ने सभी का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा। मोहन दुवारा और शिव प्रसाद बरूआ ने खोल बजाया। भास्कर दास ने ढोलकी वादन का बेहतरीन प्रदर्शन कर वाहवाही लूटी। कार्यक्रम के अंत में रंजन गोगोई ने असम के प्रसिद्ध बीहू ‘जल्दी जोबन कालत, ओ बनर बगरी पीरिती, ओ बनर बगरी’ की प्रस्तुति दी। इन सभी प्रस्तुतियों में दर्शकों ने भरपूर आनंद लिया।
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- Indira Gandhi National Centre for the Art, New Delhi इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली
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