Guru Ms. Bedabati Lourembam is an extremely popular folk singer and theatre artist of Manipur. She presented a bouquet of Manipuri folk songs along with her collaborating artists Moirang Them Langlenn, Girija Lourembam, Thokchim Priyobarta, and Chingangbam Pakasana. During this programme, Thinggujam Sanjit accompanied brilliantly on the flute, Thoukchom Rajiv Singh on the drum, and Laishram Milanjit Singh on the Pena and Sanantara. These artists presented ‘Khunungaishei’ at the beginning of the programme. ‘Khunungaishei’ is an ancient folk song of Manipur. It is sung by the people of the Meitei community. In olden times, these songs were sung without the accompaniment of any instrument. Gradually, these songs were transmitted from one generation to another as an oral tradition. There was no script for these songs. Men and women used to sing these songs to praise natural beauty and express mutual love. These artists sang three ‘Khunungaishei’ songs, which were much appreciated by the audience. Subsequently, these folk artists sang the song ‘Loktak Sheithaba Eshei’. Loktak, the largest freshwater lake in the Northeast, is in Moirang, Manipur. This lake is considered to be very holy by the people here. The natural beauty of this lake is amazing. Local people do fishing in this lake, which is their means of livelihood. This lake is described in the ‘Loktak Sheithaba Eshei’ song. The next item of the programme was the ‘Loungakaishai’ folk song. This song is about protecting the paddy crop from the damage caused by birds, and the mutual love between a man and a woman. The ‘Khullangeshai’ song was presented at the end of the programme. It is a popular duet of the Meitei community. In this song, the love between a man and a woman is effectively presented. There is a melodious confluence of literature and music in these folk songs. These songs are sung while harvesting the crop, so that those working in the fields do not feel tired. In other words, both work and fun go hand in hand. Throughout her presentations, Guru Bedabati Lourembam showcased her trained voice. While singing, she could easily go from the lowest to the highest note of the octave. Her sweet melodious voice and natural body movements made these folk songs more attractive. Her language was definitely new for the audience, but she made up for this with her rendition style. It was a great opportunity for the audience to understand the culture of Manipur, which they enjoyed to the full. गुरु सुश्री बेदबती लौरेम्बम मणिपुर की बेहद लोकप्रिय लोकगायिका और रंगमंच कलाकार हैं। उन्होंने अपने सहयोगी कलाकार मोइरांग थेम लान्ग्लेन्न, गिरिजा लौरेम्बम, थोकचीम प्रियोबर्ता और चिन्गांगबम पकासना के साथ मणिपुर के लोकगीतों का गुलदस्ता पेश किया। इस दौरान बांसुरी पर थिन्गुजाम संजीत, ढोल पर थौक्चोम राजीव सिंह और पेना और सननतारा पर लैश्रम मिलनजीत सिंह ने शानदार संगत कर समां बांधा। इन कलाकारों ने कार्यक्रम की शुरुआत में ‘खुनुंगईशेई’ प्रस्तुत किया। ‘खुनुंगईशेई’ मणिपुर का बेहद प्राचीन लोकगीत है। इसे मैतई समुदाय के लोग गाते हैं। पुराने जमाने में इन गीतों को वाद्यों के बिना ही गाया जाता था। धीरे-धीरे वाचिक परंपरा के रूप में ये गीत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होते चले गए। इन गीतों की कोई लिपि नहीं थी। पुरुष और महिला प्राकृतिक सौंदर्य की तारीफ़ और आपसी प्रेम को व्यक्त करने के लिए ये गीत गाया करते थे। इन कलाकारों ने तीन ‘खुनुंगईशेई’ गीत गाए, जिसे दर्शकों ने काफ़ी सराहा। इसके बाद इन लोक कलाकारों ने ‘लोकटक शेइथाबा ईशेई’ गीत गाया। दरअसल, पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी और ताजे पानी की झील लोकटक मणिपुर के मोइरांग में है। इस झील को यहाँ के लोग बहुत प्रवित्र मानते हैं। इस झील का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। स्थानीय लोग इसी झील में मछलियां पकड़ते हैं, जो उनका रोजगार है। ‘लोकटक शेइथाबा ईशेई’ गीत में इसी झील का बखान किया जाता है। कार्यक्रम की अगली कड़ी थी- ‘लौंन्गाकईशई’ लोकगीत। इस गीत में धान की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले पक्षियों से बचाने और महिला पुरुष के प्रेम का भाव होता है। कार्यक्रम के अंत में ‘खुल्लांगइशेई’ गीत प्रस्तुत किया गया। यह मैतई समुदाय का लोकप्रिय युगल गीत है। इस गीत में स्त्री और पुरूष के प्यार को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। इन लोकगीतों में साहित्य और संगीत का सुरीला संगम होता है। इन गीतों को गाते गुनगुनाते फसल की कटाई की जाती है, जिससे खेतों में काम करने वालों को थकान नहीं होती। यानि काम का काम और मौज की मौज। अपनी सभी प्रस्तुतियों में गुरु बेदबती लोरेम्बम ने सधी हुई आवाज का परिचय दिया। वे बड़ी ही सहजता से खरज से तार सप्तक के सुरों तक पहुँच रही थीं। उनकी मिठास भरी आवाज और सहज अभिनय ने लोकगीतों को आकर्षक बना दिया। दर्शकों के लिए उनकी भाषा जरूर नई थी लेकिन अपनी अदायगी के अंदाज से उन्होंने इस कमी को पूरा किया। दर्शकों के लिए मणिपुर की संस्कृति को समझने का यह शानदार मौका था, जिसका उन्होंने पूरा आनंद लिया।
Related Organizations
- Published in
- India
- Source
- Indira Gandhi National Centre for the Art, New Delhi इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली
- Type
- Video