The Union Territory of Dadra Nagar Haveli adjoining Nashik in Maharashtra and Vapi and Valsad in Gujarat was ruled by the Portuguese. Its headquarter is in Silvassa. The Warli, Kokana and Koli tribes of this place do farming and work as labourers. They also dance and sing to eliminate their fatigue faced during these tasks. Their instruments are also made from locally available resources. They have a very popular wind instrument named - Tarpa. It is made with the help of a bottle of gourd, toddy leaves, bamboo and wax. Tarpa is an instrument played along with all dances. Similarly, there is another instrument - Thaal Gaan. In this, a straight branch of the Sarbut tree is made to stand with the help of wax in the middle of a large brass plate, which is played by rubbing the fingers up and down the gourd. The artist plays this by putting the plate on his lap. Thaal Gaan is also played during the night-long singing of hymns or Jagrata or in the homes of bereaved families. Traditionally, stories of the cycle of life and hymns of God are sung along with these musical instruments. In Sanjari, the artist Sunil Ismal Korda from Dadra Nagar Haveli and his fellow artists started the programme by giving information about the instruments. Fellow artists performed folk songs with these instruments. They started the programme by first offering prayers to Lord Ganesh. After this, a Bhajan of Lord Shankar - 'Dokyavar Chandoba Aali Ganga' - was presented. Then came the folk song 'Ha Dev Kaseni Banvila'. It conveyed the message that the human body is made of clay. Folk artists also performed 'Kiti sangu mi sangu kunala', which is sung on the occasion of a good harvest. At the end of the program a dance was performed dedicated to all the deities. The lyrics of this folk song were 'Asa Dev Pavayicha Nayi Re'. Rasik Khandu Pardhi, a fellow artist of Sunil Ismal Korda, gave a very good support during singing. During the program, Laxman Bachcha Mahla accomapnied on the Tarpa, Sonya Ikal Shingade on the Thaal Gaan, Sadu Balu Korda on the Dhol, Sitaram Navasu Chaudhary and Manji Jhipar Korda on the Sambal, Raju Janu Ghantal, and Kalu Bhika Kadali on the Shehnai, which was all very well received and appreciated by the audience. महाराष्ट्र के नासिक और गुजरात के वापी और वलसाड से सटे केंद्र शासित प्रदेश दादरा नगर हवेली पर पुर्तगालियों का शासन था। इसका मुख्यालय सिलवासा में है। यहाँ के वारली, कोकणा और कोली जनजाति के लोग खेती और मजदूरी करते हैं। इस दौरान अपनी थकान मिटाने के लिए नाचना-गाना भी करते हैं। इनके वाद्ययंत्र भी स्थानीय तौर पर उपलब्ध संसाधनों से बनते हैं। इनका एक देसी फूंक वाद्य बहुत प्रचलित है - तारपा। इसे लौकी के तुम्बे, ताड़ी के पत्तों, बाँस और मोम की मदद से बनाया जाता है। तारपा सभी नृत्यों के साथ बजाया जाने वाला वाद्य है। इसी तरह एक अन्य वाद्य है- थाल गाण। इसमें पीतल की परात के बीच सरबूट पेड़ की सीधी टहनी को मोम के सहारे खड़ा कर दिया जाता है, जिसे हाथ की ऊंगलियों को ऊपर-नीचे घिस कर बजाया जाता है। कलाकार इस परात को गोद में रखकर बजाते हैं। थाल गाण को जगराते में या शोक संतप्त परिवारों के यहाँ भी बजाया जाता है। इन वाद्ययंत्रों के साथ साथ परंपरागत तौर पर जीवनचक्र की कहानियाँ और भगवान के भजन गाए जाते हैं। संजारी में दादरा नगर हवेली से आए कलाकार सुनील इस्मल कोरडा और उनके साथी कलाकारों ने वाद्यों की जानकारी देने के साथ कार्यक्रम शुरू किया। साथी कलाकारों ने इन वाद्यों के साथ लोकगीतों की प्रस्तुति दी। इसमें सबसे पहले गणेश जी की प्रार्थना की गई। इसके बाद भगवान शंकर का भजन ‘डोक्यावर चांदोबा आली गंगा’ प्रस्तुत किया गया। फिर बारी आई लोकगीत ‘हा देव कासेनी बनविला’ की। इसका भाव था कि मनुष्य का शरीर मिट्टी का बना है। लोक कलाकारों ने इसी कड़ी में अच्छी फसल होने पर गाए जाने वाले खुशी के गीत ‘किती सांगू मी सांगू कुणाला’ की प्रस्तुति भी दी। कार्यक्रम के अंत में सभी देवी देवताओं को याद करते हुए नृत्य किया गया। इस लोकगीत के बोल थे ‘असा देव पावायचा नाय रे’। सुनील इस्मल कोरडा के साथी कलाकार रसिक खंडू पारधी ने गायकी में उनका बेहतरीन साथ दिया। कार्यक्रम के दौरान तारपा पर लक्ष्मण बच्चा माहला, थाल गाण पर सोन्या ईकल शिंगाडे, ढोल पर सदु बालू कोरडा, साम्बल पर सीताराम नवसू चौधरी और मनजी झिपर कोरडा, शहनाई पर राजू जानू घान्ताल और कालू भिका कडाली ने शानदार संगत की, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।
Related Organizations
- Published in
- India
- Source
- Indira Gandhi National Centre for the Art, New Delhi इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली
- Type
- Video