cover image: Sanjari : Folk Music of Himachal Pradesh by Hem Raj and Jiya Lal Thakur संजारी : हिमाचल प्रदेश के लोक गीत - हेम राज और जिया लाल ठाकुर

Sanjari : Folk Music of Himachal Pradesh by Hem Raj and Jiya Lal Thakur संजारी : हिमाचल प्रदेश के लोक गीत - हेम राज और जिया लाल ठाकुर

30 Oct 2018

Nature has itself endowed sweetness to the music of Himachal Pradesh. It is said that even Gods enjoy the echo of the sounds that emanate from the folk instruments of this state. Two folk singers of Himachal Pradesh won the hearts of the audience with their talent. The programme was started by Jiyalal Thakur, who is not only a brilliant folk singer but also does research in all aspects of music. He has composed many patriotic and revolutionary songs based on Vedic instruments and rhythms. For this work, he has been honored by the former President, Dr. Abdul Kalam. Jiyalal Thakur started his programme with the folk song titled 'Mohana'. Mohana is a kind of solemn historical tale. There is no rhythm in it. The story is about the execution of an innocent cowherd and the subsequent mourning of his death by his mother. After this sad song, his next presentation portrayed the life of the village with the song 'Hae Mama Mere Thaguda Na'. The song was based on the rhythm of the ‘Malini Chhanda’. After this, was the turn of the third folk song. This was based on the traditional Nati of Ram Sharan, which is a type of singing style. The Nati made of 12 measures was based on the rhythm of Upendra Vajra Chhanda, which also included the Karyala folk drama. After the presentation of Jiyalal Thakur, the second singer Dr. Hemraj Chandel came on the stage. He too presented folk songs from Himachal Pradesh before the audience. His first presentation was - Jhuri. This singing style described the beauty of the heroine and the agony of her lover. After this, the next performance was - Ghalu Majur. In this song he presented the challenges of mountain life. It mentioned how the workers on the mountain cut the dry wood of the Mail from high altitudes and make sleepers out of them. Then they bring down the same sleeper by floating them in the river water. This was followed by Dr. Hemraj's next performance - the Bhyagana song, which is a morning song. It was a devotional song, dedicated to Lord Krishna. After receiving accolades from the audience, he introduced another aspect of the arts of Himachal Pradesh. This time he sang an ancient and solemn social song named 'Basoa'. This song was about the malpractice of marrying off girls with mismatched bridegrooms in lieu of money. This practice has stopped now. Finally, he narrated the story of King Bhartrhari , who was ready to renounce everything and become an ascetic. During these presentations, Surajmani accompanied on the Shehnai, Sunil Kumar on the Dhol, Chhotu Ram on the traditional Nagada, and Pawan Kumar on the Ransinga and on the Karnal. These great accompaniments added more fragrance to these folk songs. हिमाचल प्रदेश के संगीत को प्रकृति ने अपनी तरफ़ से ही मिठास दी है। यहाँ के लोकवाद्यों से जो आवाज निकलती है उस आवाज की गूंज के बारे में कहा जाता है कि देवता भी उसका आनंद लेते हैं। इसी हिमाचल प्रदेश की मिट्टी के दो लोकगायकों ने अपनी प्रतिभा से श्रोताओं का दिल जीत लिया। कार्यक्रम की शुरूआत जियालाल ठाकुर ने की, जो एक शानदार लोकगायक होने के साथ-साथ संगीत के तमाम पहलुओं पर शोध भी करते हैं। उन्होंने कई राष्ट्रीय और क्रांतिकारी रचनाओं को वैदिक वाद्यों और तालों से सजाया है। इसके लिए उन्हें पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सम्मानित भी किया था। जियालाल ठाकुर ने अपने कार्यक्रम की शुरुआत लोकगीत ‘मोहणा’ से की। मोहणा एक तरह की गंभीर ऐतिहासिक कथा है। इसमें किसी भी तरह की ताल नहीं होती। इस कथा में एक निर्दोष ग्वाले को फांसी दिए जाने और उसके बाद उसकी माँ के विलाप को दिखाया जाता है। इस गंभीर गायन के बाद उन्होंने ‘हाए मामा मेरे ठागुदा ना’ गीत से गाँव की जिंदगी को श्रोताओं के सामने रखा। यह गीत मालिनी छंद की ताल पर आधारित था। इसके बाद तीसरे लोकगीत की बारी आई। तीसरा लोकगीत पारंपरिक राम शरण की नाटी पर आधारित था, जो एक किस्म की गायन शैली होती है। बारह मात्रा की नाटी उपेंद्र वज्रा छंद की ताल पर आधारित थी, जिसमें करयाला लोकनाट्य भी शामिल था। जियालाल ठाकुर की प्रस्तुति के बाद दूसरे गायक डॉक्टर हेमराज चंदेल ने मंच संभाला। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के ही अन्य लोकगीतों को श्रोताओं के सामने प्रस्तुत किया। उनकी पहली प्रस्तुति थी- झूरी। इस गायन शैली में नायिका के सौंदर्य और उसके प्रेमी की व्यथा का वर्णन था। इसके बाद अगली प्रस्तुति थी- घालू मजूर। इस प्रस्तुति में उन्होंने पहाड़ी जीवन की चुनौतियों को सामने रखा। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में यह बताया कि पहाड़ पर मजदूर किस तरह ऊँची जगहों से मेल की सूखी लकड़ियाँ काटकर उसका शहतीर यानी स्लीपर बनाते हैं। फिर उसी शहतीर को वे पानी में बहाते हुए नीचे ले आते हैं। इसके बाद डॉक्टर हेमराज की अगली प्रस्तुति थी- भ्यागणा गीत, जो प्रभाती रचना थी। उन्होंने इसमें भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति रचना गाई। श्रोताओं से मिली वाहवाही के बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश की कला का एक और रंग सामने रखा। इस बार उन्होंने ‘बसोआ’ सुनाया, जो एक प्राचीन और गंभीर सामाजिक गीत है। इस गीत में पैसा लेकर लड़की का बेमेल ब्याह कराने की कुप्रथा का जिक्र है। अब यह प्रथा बंद हो चुकी है। अंत में उन्होंने राजा भतृहरि की कथा सुनाई जो वैराग्य लेने के लिए तैयार हो जाते हैं। इन प्रस्तुतियों के दौरान शहनाई पर सूरजमणि, ढोल पर सुनील कुमार, पारंपरिक नगाड़े पर छोटू राम, रणसिंगा और करनाल वादन पर पवन कुमार ने शानदार संगत कर इन लोकगीतों की खुशबू को और महका दिया।
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Source
Indira Gandhi National Centre for the Art, New Delhi इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली
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Video