cover image: Sanjari : Folk Music of West Bengal by Dipanita Acharya संजारी : पश्चिम बंगाल के लोक गीत -  दीपनिता आचार्य

Sanjari : Folk Music of West Bengal by Dipanita Acharya संजारी : पश्चिम बंगाल के लोक गीत - दीपनिता आचार्य

28 Oct 2018

Dipanita Acharya is a famous folk singer of West Bengal. She has received her training under Ustad Wasim Ahmed Khan, Guru Abhijeet Bose and Parvati Baul. Now Dipanita Acharya also sings Baul songs. Along with this, she also beautifully sings the Bhatiali songs i.e. the songs of the boatmen. There is a minute difference between these two singing styles. Baul folk songs consists of Guru Tattva, Deva Tattva and Atma Tattva or are spiritual in nature, while Bhatiali songs are based on Prakriti Tattva or nature. Baul singers of West Bengal usually sing the songs of the wandering mendicants. Her first choice were the songs by fakir Lalon Shai. Bowl singing is performed with the accompaniment of the Iktara and the Duggi. The artist keeps on getting immersed in singing and the audience too goes on enjoying it. Dipanita Acharya started her program with the 'Deho Tori' composition of Shikshatakam of Chaitanya Mahaprabhu. The emotion conveyed here is - My Master, I dedicate my boat-like body to you. Now it is you who has to take it across all river or the earthly concerns. The lyrics of her second song were - 'Nishithe Jayiyo Phoolo Bone'. In this song, the emotions of the Sufi Poet Shekhar Bhanu of Bangladesh were narrated in which he says that there are a total nine doors in our body. We have to close all of them in order to be united with God. The next performance in this episode was a traditional song in the Jhumar style, which had the lyrics - 'Bone Bajeyala Bansi'. Radha's state of mind is described in this song that as soon as her ears hear the sound of a flute, she becomes filled with emotions. She immediately leaves the house on the pretext of filling water and reaches the Kadamb Tree, where Shyam is playing the flute. The next performance was a Baul song, which conveyed the message that we should love the God-like conscience present in us, so that God and devotees become one. Dipanita Acharya's next performance was 'Oghor Manush'. Its sense was that God is formless, and it is very difficult to get Him. For this, it is necessary to have a truthful mind and kindred devotional spirit. Artist Govind Das, who accompanied Dipanita Acharya for the event, also sang a song written by Lalon Sai. The essence of this presentation was - Oh truth of my dear heart, I have placed you in my soul. This work was presented by Govind Das joyfully swaying to the music. The last presentation of the programme was- ‘Milan Hobe’. In this presentation, the artists compared the union of man with the almighty God as the union of Krishna and Radha. Dipanita Acharya and Govind Das also danced during the presentation, which was appreciated by the audience. During this programme, along with Dipanita Acharya, Navonil Sarkar accompanied on the dotara and the mandolin while Govinda Dey was on the sarinda. Their co-singer Govind Das also played the khomak. दीपनिता आचार्य पश्चिम बंगाल की प्रसिद्ध लोकगायिका हैं। उन्होंने उस्ताद वसीम अहमद खान, गुरु अभिजीत बोस और पार्वती बाउल से शिक्षा प्राप्त की है। दीपनिता आचार्य भी अब बाउल गीत गाती हैं। इसके साथ-साथ वे भटियाली गीत यानि नाविकों के गीत भी बड़ी खूबसूरती से गाती हैं। इन दोनों गायन शैलियों में छोटा सा फ़र्क है। बाउल लोकगीत में गुरू तत्व, देह तत्व और आत्म तत्व का समावेश होता है, जबकि भटियाली गीत प्रकृति तत्व पर आधारित होते हैं। आमतौर पर पश्चिम बंगाल के बाउल गायक फ़कीरों के गीत गाते हैं। उनकी पहली पसंद है - लालोन शाई। बाउल गायन इकतारा और डुग्गी बजाकर होता है। इस गायकी में कलाकार डूबता चला जाता है और दर्शकों को भी आनंद आता है। दीपनिता आचार्य ने अपने कार्यक्रम की शुरुआत चैतन्य महाप्रभु के शिक्षाष्टकम की ‘देहो तोरी’ रचना से की। इस रचना का भाव है कि गुरूवर, मेरी देह रूपी नाव आपको समर्पित है। अब आप ही इसे पार लगाइए। उनके दूसरे गीत के बोल थे- ‘निशीथे जाईयो फूलो बोने’। इस गीत में बांग्लादेश के सूफ़ी कवि शेखर भानु के भावों को बताया गया है कि हमारे शरीर में कुल नौ द्वार हैं। इन्हें बंद करके हमें ईश्वर से एकाकार होना है। इस कड़ी में अगली प्रस्तुति झूमर शैली का पारंपरिक गीत था, जिसके बोल थे- ‘बोने बाजेयला बंसी’। इस गीत में राधा की मनस्थिति का वर्णन है कि राधा के कानों में जैसे ही बांसुरी की आवाज पड़ती है वे भाव विभोर हो जाती हैं। वे पानी भरने के बहाने से तुरंत घर से निकलती हैं और कदम्ब के उस वृक्ष तक पहुँच जाती हैं जहाँ श्याम बंसी बजा रहे हैं। अगली प्रस्तुति एक बाउल गीत था, जिसका अर्थ था कि हमें ईश्वर रूपी अंतरात्मा से प्यार करना चाहिए, जिससे ईश्वर और भक्त एक हो जाएँ। दीपनिता आचार्य की अगली प्रस्तुति थी ‘ओघोर मानुष’। इसका भाव था कि ईश्वर निराकार है। उसे पाना काफ़ी कठिन है। इसके लिए सच्चे मन और आत्मीय भक्ति का होना जरूरी है। इस कार्यक्रम के लिए दीपनिता आचार्य के साथ आए कलाकार गोविंद दास ने भी लालोन साई का लिखा गीत गाया। इस प्रस्तुति का अर्थ था कि मेरे प्यारे मन के सच मैंने तुम्हें हृद्य में बिठा लिया है। इस रचना को गोविंद दास ने झूमझूम कर प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की आखिरी प्रस्तुति थी- मिलन होबे। इस प्रस्तुति में कलाकारों ने सर्वशक्तिमान ईश्वर से मिलन को कृष्ण और राधा के मिलन जैसा बताया। इस प्रस्तुति के दौरान दीपनिता आचार्य और गोविंद दास ने नृत्य भी किया, जिसे दर्शकों की सराहना मिली। इस कार्यक्रम के दौरान दीपनिता आचार्य के साथ दोतारा और मेंडोलिन पर नवोनील सरकार ने और सरिंदा पर गोविंद डे ने संगत की। इनके सहगायक गोविंद दास ने खोमक बजाकर संगत की।
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Source
Indira Gandhi National Centre for the Art, New Delhi इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली
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Video