क़ाफ़िये की ये बहसें काफ़ी दिलचस्प हैं

12 May 2021

सौती क़ाफ़िया या'नी लफ़्ज़ सुनने में एक जैसी आवाज़ देते हों चाहे उनका इमला (spelling) अलग हो। मसलन ख़त के आख़िर में ‘तोय’(خط) है और मत(مت) के आख़िर में ‘ते’ है तो देखने में बे-शक ये एक दूसरे से मुख़्तलिफ़ मा'लूम होते हैं मगर सुनने में एक ही आवाज़ देते हैं। इसी तरह ‘ख़ास’ और ‘पास’ का हम-क़ाफ़िया होना। यही सौती क़ाफ़िया है। The post क़ाफ़िये की ये बहसें काफ़ी दिलचस्प हैं appeared first on Best Urdu Blogs, Urdu Articles, Urdu Shayari Blogs.
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Authors

Ajmal Siddiqi

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