उर्दू के वसीअ दामन में पली-बढ़ी मुख़्लिफ़ असनाफ़-ए-सुख़न में ग़ज़ल के हिस्से में जो मक़बूलियत आई उतनी शोहरत और मक़बूलियत शायरी की किसी सिन्फ़ को न मिल सकी। ग़ज़ल हर दौर में अपने पढ़ने-सुनने वालों से नए रंग-ढंग, नए रूप में मिली। कभी इस पर तसव्वुफ़ का रंग ग़ालिब आया, तो कभी इश्क़-ओ-मुहब्बत के जज़्बात से सरशार नज़र आई। The post 10 साल, 10 शायर appeared first on Best Urdu Blogs, Urdu Articles, Urdu Shayari Blogs.
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